प्रकाश पर्व / मप्र में गुरु नानकदेवजी जिन 6 स्थानों पर आए उनमें से एक है उज्जैन, अब यहां तक आएगी उज्जैन दर्शन बस

गुरुदेव गिरनार पर्वत की यात्रा कर उज्जैन (उस समय का अवंतिपुर) आए, यहां वे 3 दिन रहे


रामघाट के सामने इमली के नीचे, योगीराज भर्तृहरि के शिष्यों के साथ सत्संग किया



ओमप्रकाश सोणोवणे/ उज्जैन. सिख समाज अपने प्रथम गुरु नानकदेवजी का 550वां प्रकाश पर्व मंगलवार को मनाएगा। मप्र में गुरु नानकदेवजी जिन 6 स्थानों पर आए उनमें से एक उज्जैन है। गुरुदेव गिरनार पर्वत की यात्रा कर उज्जैन (उस समय का अवंतिपुर) आए। यहां वे 3 दिन रहे। रामघाट के सामने इमली के नीचे, योगीराज भर्तृहरि के शिष्यों के साथ सत्संग किया। इस स्थान को उदासीन संत स्व. ईश्वरदास शास्त्री ने जत्थेदार सुरेंद्रसिंह अरोरा की मदद से खोजा।


यहां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी की मदद और भूरीवाले संत की कारसेवा से अब विशाल गुरुद्वारा बन गया है। गुरुदेव के 550वें प्रकाश पर्व पर उज्जैन दर्शन बस अब यहां भी पहुंचेगी। गुरुद्वारे की ओर से बस के यात्रियों को लंगर और चाय-नाश्ता नि:शुल्क कराया जाएगा। यहां शहर के गरीब परिवार की बेटियों की शादी के लिए यह परिसर निशुल्क उपलब्ध कराएंगे।



शिप्रा किनारे जहां गुरु नानकदेवजी ने 3 दिन बिताए, वहां 25 करोड़ रुपए की लागत से 9 साल में बना नया गुरुद्वारा, यहीं सत्संग में कहा था- क्षमा का स्वभाव मेरे लिए व्रत, उत्तम आचरण है



गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज है उज्जैन में कही नानकदेवजी की वाणी
अंग- 223
मनुष्य आध्यात्मिक कर्म करे तो सच्चा है। झूठा मनुष्य मुक्ति के रहस्य को नहीं समझ सकता। योगी वह है जो प्रभु मिलन की युक्ति विचारता है और पांच विकारों का अंत कर ईश्वर को हृदय में बसाता है।



अंग- 223क्षमा का स्वभाव मेरे लिए व्रत, उत्तम आचरण और संतोष है। मुझे न रोग का दुख है न मृत्यु का। मैं निराकार ईश्वर में लीन होकर मुक्त हो गया हूं।



अंग 411मनुष्य को पाप की घाटी से उतर कर गुणों के सरोवर में स्नान करना चाहिए। ईश्वर का गुणगान करना चाहिए। जैसे आकाश में जल है वैसे प्रभु में लीन रहना चाहिए और सत्य का चिंतन कर अमृत रूपी महारस का पान करना चाहिए।



अमृतसर के संग्रहालय में लिखा है इसका इतिहास
जत्थेदार सुरेंद्र सिंह अरोरा कहते हैं- बचपन में अमृतसर के संग्रहालय में गया था। वहां पढ़ा था गुरु नानकदेवजी उज्जैन भी आए थे। तभी से मन में प्रश्न था गुरुदेव कहां आए थे। महामंडलेश्वर स्व. ईश्वरदासजी शास्त्री ने पुरानी पुस्तक जनम साखी परंपरा में उज्जैन का वर्णन खोजा। इसके आधार पर मौजूदा स्थान मिल ही गया। जमीन का सौदा हो गया। इसके बाद गुरुनानक यूनिवर्सिटी अमृतसर के इतिहास विशेषज्ञों को बुलाकर स्थान दिखाया। उन्होंने भी सहमति दे दी। कथाकार संतसिंह मस्कीन आए। उन्होंने भी कहा- जमीन का वाइब्रेशन कह रहा है, यहीं गुरुदेव रुके थे।